पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३०४

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मतिराम-ग्रंथावली

३०० मतिराम-ग्रंथावली nmooineetinatiotismeiwwyers Sunuware गारि राख्यो चंदन, बगारि राख्यो घनसार, आँगन मैं सेज सरसिजनि सँवारि के ॥२१४।। चलत पीव परदेस कौं बरज सकौं नहिं तोहि । लै ऐहौ आभरन जो' जियत पायही मोहि ॥२१॥ आगतपतिका-लक्षण जा तिय को परदेस सैं आयो प्यौ 'मतिराम'। ताहि कहत कबि लोग हैं आगतपतिका बाम ॥२१६॥ मुग्धा-आगतपतिका-उदाहरण आए बिदेस तैं प्रानपिया, 'मतिराम' अनंद बढ़ाय अलेखै ; लोगन सों मिलि आँगन बैठि, घरी-ही-घरी सिगरो घर पेखै । भीतर भौन के द्वार खरी, सुकुमारि तिया तन-कंप बिसेखै; चूंघट को पट ओट दिएँ, पट-ओट किए पिय को मुख देखै ॥ २१७॥ पिय आयो नवबाल-तन बाढ़यो हरष-बिलास । प्रथम बारि-बूंदन उठ ज्यौं बसुमती-सुबास ॥२१८॥ winpo easammemomduo MATHAKRADHA १ तौ, २ को, ३ बैठे। छं० नं० २१४ तमोल तांबूल, पान । गारि राख्यो चंदन, बगारि राख्यो सँवारि के गणिका ने अपने प्रेमाधिक्य को दिखलाने के लिये चंदन, कपूर और कमलशय्या का प्रबंध पहले से कर रक्खा जिससे नायक को मालूम हो कि मेरे जाने का समाचार-मात्र पाने से इसे विरहताप होने लगा जिसके प्रतिकार के लिये इसे इतनी जल्दी यह सामग्री एकत्र करनी पड़ी । छं० नं० २१७ अलेखै = जिसका वर्णन नहीं हो सकता है। पट-ओट किए =किंवाड़ की आड़ किए। छं० नं० २१८ बसुमती= पृथ्वी । पिय सुबास जैसे वर्षा के प्रारंभ में पृथ्वी पर प्रथम-प्रथम : पानी बरसने से मिट्टी की सुगंध उठती है उसी प्रकार से प्रियतम के आगमन से नायिका के शरीर में हर्ष का संचार हुआ। T mitalia sinitpatinamusamanna