पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३०१
रसराज

P रसराज ३०१ मध्या-आगतपतिका-उदाहरण चंदमुखी सजनीन के संग हुती पिय अंगन मैं मनु फेरत; ताहि समै पियप्यारे को आवन प्यारी सखी कह्यो द्वार ते टेरत । आय गए 'मतिराम' जबै, तबै देखत नैन अनंद भए रत; भौन के भीतर भाजि गई हँसि कै हरुवै हरि को फिर हेरत ॥ २१९॥ पिय-आगम सरदागमन बिमल बाल-मुख इंदु। अंग अमल पानिप भयो फूले दृग-अरबिंदु ॥२२०॥ प्रौढ़ा-आगतपतिका-उदाहरण प्रानपियारो मिल्यो सपने में परी जब नेसुक नींद निहोरें; कंत को आगम त्यौं ही जगाय कह्यो सखी बोल पियूष निचोरें। यों ‘मतिराम' भयो हिय मैं सुख बाल के बालम सौं दृग जोरैं; जैसे मिहीं पट मैं' चटकीलो चढ़े रँग तीसरी बार के बोरै ।। २२१॥ पिय आयो परदेस ते हिय हुलसी अति बाम । टूट-टूक कंचुकि करी, करि कमनैती काम ॥२२२॥ परकीया-आगतपतिका-उदाहरण . आयो बिलंब बिदेस ते बालम बाल बियोग-बिथा बिसराई; आई तहाँ तिनके सँग है सब गाँव की जे जुवती मिलि आई। देखत ही 'मतिराम' कहै अँखियान मैं आनँद की छबि छाई; लाजन क्योंकर बैन कहै सु कह्यो दुख देहँहि की दुबराई ॥२२३॥ १ ज्यों पट मैं अति ही, २ जुरि । छं० नं० २२० पानिप=सरोवर। छं० नं० २२१ परी जब नेसुक नींद निहोरै=बड़ा उद्योग करने पर जब जरा-सी नींद पड़ी। मिहीं पट=बहुत बारीक कपड़ा । छं० नं० २२३ लाजन क्योंकर देहँहि की दुबराई लज्जा के मारे नायिका अपने विरह-व्यथा का हाल न कह सकी, परंतु उसके शरीर की दुर्बलता से विरह-दुःख आप ही स्पष्ट हो गया। Piri