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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३१४

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- ३१० मतिराम ग्रंथावली मंद हँसनि दग-कोर लखि बस कर लेत प्रबीन । छिन बिछरें गति होत यौं ज्यौं जल बिछु रत मीन ॥२५९।। वैशिक-उदाहरण आगमन चाहि चकचौंधि रह्वौ जब तब, ___ जगर-मगर आभरन के नगन भौ; जोबन के मद, रूप-मद वाके मैन-मद, छकि मतवारो है कै थकित पगन भौ। कहै 'मतिराम' लोल लोचन बिसाल बंक, तीछन कटाछन सौं छिदि कै लगन भौ; बार-बार भ्रमि बारिबधु-बार-भौंरन मैं, माँग की मुकतमाल-गंग मैं मगन भौ ॥२६॥ लोचन-पानिप ढिंग सजी लट-बंसी परबीन । मो मन बारिबिलासिनी फाँसि लियो जनु मीन ॥२६१॥ अभिमानी आदि त्रिविध नायक-भेद-लक्षण मानी, बचनचतूर कह्यो, क्रियाचतुर पूनि जानि । तीन भाँति और' कहत, नायक सुकबि बखानि ॥२६२॥ १ ऐसे। छं० नं० २६० आगमन भौ=वैशिक नायक वेश्या के आभ- रणों के प्रकाश में चौंधिया गया, फिर यौवन-मद में मतवाला होकर बेपैर हो गया-अन्यत्र जाने योग्य न रहा । तिस पर नैन-बाणों का शिकार होकर और भी वहीं का हुआ। वह खूब भ्रमा और अंत में वेश्या की मुक्तमालमंडित माँगरूपी भागीरथी में बिलकुल निमग्न हो गया। छं० नं० २६१ लोचन मीन=गणिका मछली का शिकार खेलनेवाली है, नेत्र सरोवर हैं और लट बंसी (फंसाने का काटा) है उसीकी मदद से उसने मेरे मन-रूपी मत्स्य को फँसा लिया है अर्थात् नेत्रों पर पड़ी वेश्या की अलकावली को देखकर मैं उसके वश में हो गया हूँ। permenia