पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३१५

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onfalpepar मानी-लक्षण करत नायका सौं कछ, नायक मन' अभिमान । तासौं मानी कहत हैं, कबि ‘मतिराम' सुजान ॥२६३॥ उदाहरण वह सुधि करो क्यों न नैन-नलिनी के दल, सेज सारे सीरे सरसिजन बिछाइए; अमल उसीर, इंदु, चंदन, गुलाब-नीर, - कहाँ लगि और उपचारन गिनाइए। छल-बल छलि-बलि वाको मैं मिलाइयत, कबि 'मतिराम' अब साहबी जनाइए; ऐसें मनभावन गुमान है जु मन भायो, प्यारी के मनाइबे कौं तुमको मनाइए ॥२६४॥ यामैं कौन सयानु है मोहनलाल सुजान ! आपु करत अपराध हो आपुहि पुनि अभिमान ॥२६५॥ वचनचतुर-नायक-लक्षण बचनन मैं जो करत है चतुराई 'मतिराम'। बचनचतुर-नायक सरस लीजै जानि सकाम ॥२६६॥ उदाहरण दूसरे की बात सुनि परत न ऐसी जहाँ, . कोकिल कपोतन की धुनि सरसाति है; छाई रहे जहाँ द्रम बेलिन सौं मिलि, __ 'मतिराम' अलि-कुलन अँध्यारी अधिकाति है। १ जो, २ करत गुमान । छं० नं० २६४ उसीर-उशीर=शीतोपचारक खस आदि ।