पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३३

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समीक्षा

समीक्षा उत्साह, भय, जुगुप्सा, विस्मय तथा शम-नामक स्थायी भावों में सबसे ऊँचा स्थान किसका है, इस विषय में मतभेद होना परम स्वाभाविक है। फिर भी हास, क्रोध, भय तथा जुगुप्सा-नामक स्थायियों में किसी एक को प्रथम स्थान देने का आग्रह करते हुए प्राचीन एव अर्वाचीन बहत कम विद्वान् देखे गए हैं। महत्त्व-पूर्ण होते हुए भी इनको यह गौरव नहीं प्राप्त है कि स्थायियों में अपनी सर्व-श्रेष्ठता प्रमाणित कर सकें। शेष पाँच स्थायियों में महामति धर्मदत्तजी की राय है कि अद्भुत स्थायी ही सर्वश्रेष्ठ है। वह कहते हैं- रसे सारश्चमत्कारः सर्वत्राप्यनुभूयते ; तच्चमत्कारसारत्वे सर्वत्राप्यद्भुतो रसः । रस में सार वस्तु चमत्कार है । विस्मय-रूप चित्त का विस्तार चमत्कार है । विस्मय से ही चमत्कार उत्पन्न होता है । इस कारण अद्भुत-रस ही सर्व-श्रेष्ठ है । धर्मदत्तजी की उपर्युक्त सम्मति का अन्य आचार्यों ने वैसा आदर नहीं किया है। हमारी राय में रस में चम- कार उत्पन्न कराने के लिये विस्मय परमावश्यक नहीं है । चमत्कार-. उत्पादक कारणों में विस्मय भी हो सकता है, पर वही एकमात्र कारण नहीं है। कम-से-कम अद्भुत-रस का स्थायी भाव विस्मय उस विस्मय से बिलकुल भिन्न है, जो अन्य रसों में चमत्कार का कारण है । रस- चमत्कार का कारण विस्मय हो भी, तो वह शृंगारादि रसों में रत्यादि स्थायी भावों के सामने इतना दब जाता है कि उसका पृथक अस्तित्व ही प्रकट नहीं होता। ऐसी दशा में विस्मय को सर्व-श्रेष्ठ feelings are the instruments of rhetoric more justly than of poetry-anger, indignation, emulation, martial spirit and love of independence. -John Henry Newman