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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३३२

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मतिराम-ग्रंथावली

मतिराम-ग्रंथावली ROMANOHRement शृंगार-वर्णन जो बरनत तिय पुरुष को कबि कोबिद रतिभाव। तासौं रीझत हैं सुकबि सो सिंगार रसराव ।। ३४२ ।। कहि सिंगार रसभाव द्वै, प्रथम कहत संयोग । ग्रंथन को मत देखि कैं, दूजो कहत बियोग ॥ ३४३ ॥ संयोग-शृंगार-लक्षण प्रमुदित नायक नायका जिहिं मिलाप मैं होत । सो संजोग सिंगार कहि बरनत सुमति उदोत ।। ३४४ ॥ उदाहरण प्रान प्रिया प्रिय आनंद सौं, बिपरीति रची रति रंग रह्यौ भ्वै ; काम कलोलनि मैं ‘मतिराम' रही धुनि त्यौं कलिकिंकिनि की है। आनन की उजियारी परी स्रमबूंद समेत उरोज लखै द्वै ; चंद की चाँदनी के परसें मनौं चंद पखान पहार चले च्वै॥ ३४५ ॥ छवत परसपर हेरि के राधा नंदकिसोर। सबमैं द्वै ही होत हैं चोर मिहीचनि चोर ॥ ३४६ ।। हाव-लक्षण दंपति के संयोग मैं होत प्रकट जे भाव । ते संयोग सिंगार मैं बरनत सब कबि हाव ॥ ३४७ ॥ लीला प्रथम, बिलास पुनि, त्यौं बिच्छित्ति बखान। बिभ्रम', किलकिंचित बहुरि, मोट्टाइत मन आन ॥ ३४८ ।। बहरि कुट्टमित कहत हैं, पूनि बिब्बोक बखान । ललित बरनि अरु बिहित कहि, सकल हाव-दस जान ॥३४९।। १ समीप। छं० नं० ३४५ चंदपखान-चंद्रपाषाण=वह पत्थर जिसमें चंद्र- किरणों का स्पर्श होने से जल-बुंद टपकने लगते हैं ।