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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३३३

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रसराज

रसराज लीलाहाव-लक्षण पिय भूषन बचनादि की लीला करै जो बाल । तासौं लीलाहाव कहि बरनत सुकबि रसाल ॥ ३५० ॥ उदाहरण प्यार पगी पगरी पिय की धर' भीतर आपने सीस सँवारी ; एतें मैं आँगन तें उठिकै तहाँ आय गयो 'मतिराम' बिहारी। देखि उतारन लागी पिया पिय सौंहनि सौं बहुरयौ न उतारी ; नैन नवाय लजाय रही उर लाय लई मुसकाय पियारी ॥ ३५१॥ मेरे सिर कैसी लगै? यों कहि बाँधी पाग। संदर रति बिपरीत मैं, प्रगट कियो अनुराग ॥ ३५२ ॥ विलासहाव-लक्षण गवन नयन बचनादि मैं होत जो कछक बिसेष । बरनत ताहि बिलास कहि, रसमय सूकबि असेष ॥ ३५३ ॥ उदाहरण किंकिनी कलित कल, नपुर ललित रव, गौन तेरो देखि के सकतु करि गौन को ? - मृदु मुसकानि मुखचंद चारु चाँदनी सौं, राख्यो के उज्यारो अभिराम द्वार भौन को। सहज सुभावनि सौं भौंहनि के भावनि सौं, हरति है मन 'मतिराम' मनरौन को ; रूपमद छकी आजु छबि सौं छबीली देति, तिरछी चितोनि मैन बरछी-सी कौन को ।। ३५४ ॥ १ बसि, २ मोहनी। छं० नं० ३५१ पिय सौंहनि सौं बहुरयौ न उतारी=प्रियतम के शपथ दिलाने पर फिर पगड़ी नहीं उतारी । छं० नं० ३५.४ मन रौन= मनरमण ।