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मतिराम-ग्रंथावली

मतिराम-ग्रंथावली mtamansamayan indianma -- -- तेरी चलनि, चितौनि, मृदु, मधुर-मंद मुसकानि । छाय रही लखि लाल की सखियन मिस अँखियान ॥ ३५५ ॥ बिच्छित्तिहाव-लक्षण थोरे ही भूषन बसन जहँ सोभा सरसाय। ताहि कहत बिच्छित्ति हैं, जे प्रबीन कबिराय ॥ ३५६ ॥ उदाहरण वारने सकल एक रोरी ही की आड़ पर, हा हा न पहिरि आभरन और अंग मैं ; कबि 'मतिराम' जैसे तीछन कटाछ तेरे, ऐसे कहाँ सर हैं अनंग के निखंग मैं । सहज सुरूप सुघराई रीझो मन मेरो, डोलत है तेरी अद्भुत' की तरंग मैं ; सेत सारी ही सौं सब सौतें रंगी स्याम रंग, सेत सारी ही सौं रँगे स्याम लाल रंग मैं ॥३५७ ॥ नथुनी गज मुकतान की लसत चारु सिंगार । जिन पहिरे सुकुमारि तनु और आभरन भार ॥ ३५८ ।। विभ्रमहाव-लक्षण उलटे भूषन बसन को होतु जु है पहिराव । तासौं विभ्रमहाव कहि बरनत सब कबिराव ।। ३५९ ॥ उदाहरण साँझहि तैं चलि आवत जात,जहाँ-तहाँ लोगनि हूँ न डरौंगी; प्रीतम सौं रति ही यह रूप धौं', खैहै कहाँ जब अंक भरौंगी ? १ सुथराई, २ अचरज, ३ साँझ समै, ४ सु। छं० नं० ३५७ वारने सकल एक रोरी ही की आड़ पर सब कुछ एक रोली के आड़े तिलक पर न्योछावर किया जा सकता है। निखंग- निषंग=तरकस । Herampannada Rana- Sourcemendomes