३३२ मतिराम-ग्रंथावली उदाहरण फूलि रहे द्रुम बेलनि सौं मिलि पूरि रहीं अँखियाँ रतनारी ; मोहि अकेली बिलोकि यहाँ कछू और ही-सी भई दीठि तिहारी। जैसी हुती हमसौं तुमसौं अब होयगी ऐसिये प्रीति निहारी ; चाहत जो चित मैं हित तौ जिन बोलिए कुंजन बीच बिहारी ।। a AWARENESS dmithPER STOREETURESEROFERE Hinmenasaaraabaaduadihotomalini झूठे ही ब्रज में लग्यौ मोहि कलंक गुपाल ! सपने हू कबहूँ हिए लगे न तुम नँदलाल ! ।। ३६७ ।। कुट्टमितहाव-लक्षण ईहा' दुख अरु सुक्ख को प्रगट करे जहँ बाम । परम ललित यह हाव है, होत कुट्टमित नाम ॥ ३६८ ॥ उदाहरण सोने की-सी बेली अति सुंदर नबेली बाल, ____ठाढ़ी ही अकेली अलबेली द्वार महियाँ ; 'मतिराम' आँखिन सुधा की बरखा-सी भई, ____गई जब · दीठि वाके मुखचंद पहियाँ । नेकु नीरे जाय करि बातनि लगाय करि, _कछ मन पाय हरि वाकी गही बहियाँ ; चैनन चरचि लई सैनन थकित भई, नैनन में चाह करै बैनन मैं नहियाँ ॥ ३६९ ।। मायाकS ARMER - SEE १ जहाँ, २ गौनन । छं० नं० ३६६ रतनारी लाल । छं० नं० ३६९ महियाँ =में । पहियाँ पर । बहियाँ बाँह । नहियाँ नहीं। चैनन चरचि लई= उसके सुख को देखकर भाँप लिया। Surendrani
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