पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३३७

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HORS EE - रसराज प्रीतम को मनभावती मिलति बाँह दै कंठ। बाही छटै न कंठ ते, नाहीं छटै न कंठ ।। ३७० ॥ बिब्बोकहाव-लक्षण जो पिय को, अभिमान तैं, करै अनादर बाम । ताहि कहत बिब्बोक हैं, जे प्रबीन गुन धाम ।। ३७१॥ उदाहरण मानहु आयो है राज कछु चढ़ि बैठे हो ऐसै पलास के खोढ़े ; गज गरे सिर-मोर पखा 'मतिराम' हों गाय चरावत चोढ़े। मोतिन को मेरो तोरयौ हरा, गहि हाथन सों रहे चूनरी पोढ़े ; ऐसें ही डोलत छैल भए तुम्हें लाज न आवत कामरी ओढ़ ॥ ३७२॥ प्रान पियारो पग परचौ, तू न तकत यहि ओर। ऐसो उर जु कठोर तौ न्यायहि उरज कठोर ॥ ३७३ ॥ __ ललितहाव-लक्षण बनै बानिकन सौं सरस, सकल आभरन अंग। . ललितहाव तासौं कहैं, जे कबि बुद्धि उतंग ।। ३७४ ॥ उदाहरण मंद गयंद की चाल चलै कटि किंकिनि नेवर की धुनि बाजै ; मोती के हारनि सौं हियरो हरिज के बिलास हुलासनि साजै । १ धनु, २ साह, ३ उचितहि, ४ कल । . छं० नं० ३७० बाँही छटैकंठ गले में जो बाँह पड़ी है न तो वह छटती है और न मुँह से 'नहीं' की रट ही छटती है। छं० नं० ३७२ खोढ़े छेद जो लकड़ी के सड़ जाने से हो जाता है । चोढ़े = उत्साह के साथ । पोढ़े=मज़बूती के साथ । छं० नं० ३७३ उर=हृदय । उरज=कुच। न्यायहि वाजिब तौर से ।