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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३४२

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३३८ मतिराम-ग्रंथावली उदाहरण धुरवानि की धावनि मानो अनंग की तुंग धुजा फहरान लगी; नभमंडल द्वै छितिमंडल छवै, छनदा की छटा छहरान लगी। 'मतिराम' समीर लगै लतिका, बिरही बनिता थहरान खगी; परदेसः मैं पीव, सँदेस न पायौ, पयोद-घटा घहरान लगी । चलत लाल के मैं कियौ सजनी ! हियो पखान । कहा करौं', दरकत नहीं, इतै वियोग कृसान ।। ३९७ ॥ नवदशा-वर्णन होत बियोग सिंगार मैं, प्रगट दशा नव जानि । प्रथम कहै अभिलाष पुनि, चिंता, समृति बखानि ।। ३९८ ॥ गुन बनन, उद्वेग पुनि, कहि प्रलाप, उन्माद । व्याधि, बहुरि जड़ता कहत, कबि-कोबिद अबिबाद । ३९९ ॥ अभिलाष-लक्षण ताहि कहत अभिलाष हैं, जो मिलाप की चाह । प्रेम कथन तें जानिए, बरनत सब कबिनाह ॥ ४०० ॥ १ कहौं, २ जहाँ । छं० नं० ३९६ धुरवानि=लटकती हुई मेघ-मालाएँ । अनंग की तुंग धुजा=कामदेव की ऊँची पताका । छिति मंडल छ्वै पृथ्वी को छूकर । छनदा की छटा छहरान लगी बिजली की शोभा दिखलाई पड़ने लगी। बिरही बनिता थहरान लगी=विरहिणियाँ काँपने लगीं। पयोद-घटा घहरान लगी बादल की घटाएँ गर्जन-तर्जन करने लगीं।