पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३४३

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NE ma.TA रसराज ३३९ उदाहरण मोर-पखा 'मतिराम' किरीट, मनोहर मूरति सौं मनु लैगो; कुंडल डोलनि, गोल कपोलनि, बोल सनेह के बीज-से बैगो । लाल बिलोचनि-कौलन' सौं, मुसकाइ इतै अरुझाइ चितैगो; एक घरी धन-से तन सौं, अँखियाँन घनों घनसार सौ दैगो ।। ४०१॥ मो मन सुक लौं उड़ि गयौ, अब क्यौं हूँ न पत्याय। । बसि मोहन बनमाल मैं, रहो बनाउ बनाय ।। ४०२ ॥ चिता-लक्षण दरसन सुख की भावना करे चित्त की चाह । चिता तासौं कहत हैं जे प्रबीन रस-नाह ॥ ४०३ ॥ उदाहरण जैयै अकेली महाबन बीच तहाँ 'मतिराम' अकेलोई आवै; आपने आनन चंद की चाँदनी सो पहिलै तन-ताप बुझावै। कल कलिंदी के कुंजन मंजुल मीठे अमोल वै बोल सुनावै; ज्यौं हँसि हेरि लियो हियरो हरि, त्यौं हँसिक हियरे हरि लावै ॥ ४०४॥ १ कोरनि, २ कबि, ३ सु । .: छं० नं० ४०१ लाल बिलोचनि-कौलनि सौं मुसकाइ इतै अरुझाइ चितैगो लाल यहाँ पर मुसकिराकर अपने नेत्रकमलों से चित्त को उलझा गया। एक घरी घन-से तन सौ, अँखियान घनों धनसार सौ दैगो=एक घड़ी-भर में अपने घनश्याम शरीर को दिखलाकर उसने यह स्थिति पैदा कर दी कि मानो नायिका की आँखों में खूब कर्पूर लगाया गया हो।