पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३६६

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Rasinianumarine मतिराम-ग्रंथावली । eeminenty समोक्ति अभिन्न-रूपक उदाहरण मौज-दरियाव राव सत्रुसाल तनै जाको, जगत में सुजस सहज सतिभान हैं; बिबूध-समाज सदा सेवत रहत जाहि, जाचकनि देत जो मनोरथ को दान है। जाके गुन-सुमन-सुबास ते मुदित मन, . साँच 'मतिराम' कबि करत बखान हैं ; जाकी छाँह बसत बिराजै ब्रजराज यह, भावसिंह सोई कलपद्रुम दिवान है ॥ ६९॥ हीनोक्ति अभिन्न-रूपक उदाहरण महादानि जाचकन कौं, भाऊ देत तुरंग। पच्छनि बिगिर बिहंग हैं', सुंडन बिगिर मतंग ॥ ७० ॥ अधिकोक्ति अभिन्न-रूपक ॐ उदाहरण जंग मैं अंग कठोर महा मदनीर झरै झरना सरसे हैं; झलनि रंग घने 'मतिराम' महीरुह फूल प्रभा निकसे हैं। सुंदर सिंदुरमंडित कुंभनि गैरिक शृंग उतंग लसे हैं; भाऊ दिवान उदार अपार सजीव पहार करी बकसे हैं। -७१ ॥ १ जे, २ प्रभानि फँसे। छं० नं० ७० पच्छनि "मतंग=भावसिंह के दिए घोड़े विना परों के पक्षी और विना सूंड के हाथी के समान हैं । छं० नं० ७१ महीरुह= वृक्ष । सिंदुरमंडित कुंभ =सिंदूर लगे हुए मस्तक । गैरिक शृंग=गेरू की लाल चोटियाँ।