पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३६५

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ललितललाम पंचम प्रतीप-लक्षण कहा कछ न उपमान को, यौं जहँ करत बखान । तहौं प्रतीपहि कहत हैं, कोऊ कबि सज्ञान ॥६५॥ उदाहरण दिन-दिन दीने दूनी संपति बढ़त जाति, ऐसो याको कछ कमला को बर बर है ; हेम, हय, हाथी, हीर बकसि अनूप जिमि, भूपनि को करत, भिखारिन को घर है। कहै 'मतिराम' और जाचक जहान सब, एक दानि सत्रुसालनंदन को कर है; राव भावसिंहजू के दान की बड़ाई देखि, ___कहा कामधेनु है, कछ न सुरतरु है ।।६६।। कहा दवागनि के पियें, कहा धरें गिरि धीर। बिरहानल मैं जरत ब्रज़, बूड़त लोचन नीर ।।६७।। रूपक-लक्षण बरनत बिषयी विषय कों, करि अभिन्न, तद्रप। अधिक, हीन, सम उक्ति सों, रूपक त्रिबिध अनूप ॥६८। HERNATIONAL B १ जहँ बरनत है वस्तु को, २ उकुति । छं० नं० ६६ कमला को बर बर है लक्ष्मी का आशीर्वाद है । छं० नं० ६७ भावार्थ-हे व्रजराज आप एक बार दावानल पान कर चुके हैं और इंद्र के कोप की परवा न करके आपने गोवर्द्धन गिरि को भी धारण कियाथा । पर वह सब तो हो चुका । उससे अब क्या होता जाता है । इस समय तो व्रजमंडल गोपियों के विरहताप में जला जाता है और उनके असीम अश्रु-प्रवाह में डूबा जाता है। इससे रक्षा कीजिए तो आपके पूर्व वीरत्व की बात समझें।