३६८ मति राम-ग्रंथावली उदाहरण कोमल कमलन से कहैं, तिन्हैं न नैक सयान । होत पार लागत' हियै, नैन मैन के बान ।। ९२ ॥ भ्रांत्यपह्न,ति-लक्षण जहाँ और संका भए,२ करत झूठ भ्रम दूरि। भ्रांताह्न ति कहत हैं, तहाँ सुकबि मति भूरि ॥ ९३ ॥ उदाहरण सेवत हैं बिबुधे, 'मतिराम' सदा गुरु-बैन प्रमान के मान्यौ ; कोप किए सब भूतल के अरि भूभृत पक्षनि को गन भान्यौ। पानिप पूरन बारिद हाथनि ताप रह्यो जग मैं जस ठान्यौ ; तें समुझे पुरहूत के रूपहि मैं प्रभु भाऊ दिवान बखान्यो । ९४ ॥ छकापह्न ति-लक्षण जहाँ और की संक ते साँच छपावत बात। छेकापह्न ति कहत हैं, तहाँ बुद्धि अवदात ।। ९५ ।। उदाहरण ओठ खंडिबे कौं अरयौ मुख-सुबास-रस-रत्त । स्यामरूपनॅदलाल अलि, नहि अलि,अलि उनमत्त ।। ९६ ।। पावस भीति बियोगिनि बालनि, यौं समुझाय सखी सुख साजै; जोति जवाहिर की 'मतिराम, नहीं सुर-चाप छिनौछबि छाजै। १ लागे, २ की शंक ते । छं० न० ९४ गुरु =विद्यादान करनेवाला, बृहस्पति । बिबुधै =पंडित, देवता । भूभृत-राजा, पर्वत । पक्षनि=पक्षपाती, पर। छं० नं० ९६ अलि का प्रयोग तीन बार हुआ है, प्रथम दो बार, उसका अर्थ सखी है और अंतिम बार भ्रमर ।
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