पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३७३

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ललितललाम दंत लसैं बक पाँति नहीं, धुनि दंदभी की, न घने घन गाजै; रीझि के भाऊ नरिंद दिए कबिराजनि के गजराज बिराजै ॥ ९७ ॥ छलापह्न ति-लक्षण जहँ छल आदिक पदनि सौं, साँच छपावत बात । तहँ छलपह्न ति कहत हैं, कबिजन मति अवदात ॥ ९८ ॥ उदाहरण सुंदरिबदनि राधे सोभा को सदन तेरो, बदन बनायो चारिबदन बनाय कै; ताकी रुचि लैन कौं उदित भयो रैनपति , मूढ़मति राख्यो निजकर बगराय कै। 'मतिराम' कहै निसिचर चोर जानि याहि , दीनी है सजाइ कमलासन रिसाय के ; रातौं दिन फेरै अमरायल के आस पास , ___मुख मैं कलंक मिसि कारिख लगाय के ॥ ९९ ॥ उत्प्रेक्षा-लक्षण जहँ कीजे संभावना सो उत्प्रेक्षा जानि । बस्तु-हेतु-फल-रूप ते ताको त्रिबिधि बखानि ।। १०० ॥ एक उक्तबिषया कही, अनुक्तबिषया और। बहरि भेद द्वै बस्तु मैं, जानहु कबि-सिर-मौर ॥ १०१ ।। एक सिद्धविषया कही, असिद्धबिषया और। भेद-हेतु-फल दुहुनि मैं द्वै कहियत मतिदौर ।। १०२॥ छं० नं० ९९ चारिबदन=चतुर्मुख, ब्रह्मा । बनाय कै=अच्छी प्रकार से । रुचि=शोभा । कर बगराय कै=किरणें फैलाकर । कमलासन ब्रह्मा । छं० नं० १०२ मति-दौर=बुद्धि-विस्तार ।