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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३७४

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३७० मतिराम-ग्रंथावली उक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा उदाहरण बासव की राजै रुचि ललित बसंत खेल , खेलत दिवान बलाबंध सुलतान मैं ; कहै 'मतिराम' कबि मृगमद पंक छबि , छावत फूलेल औ गुलाल आपगान मैं । कुंकुम गुलाल घनसार औ अबीर उड़ि , छाय रहे सघन अवनि आसमान मैं ; मेरे जानि राव भावसिंह को प्रताप जस , रूप धरे फैलि रह्यो दसहू दिसान मैं ।। १०३ ॥ .. अनुक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा ___ उदाहरण जगमग जोबन अनूप तेरो रूप चाहि , __रति ऐसी रंभा-सी रमा-सी बिसराइए; देखिबे कौं प्रानप्यारी पास प्रानप्यारो खरो, चूंघट उघारि नैंक बदन दिखाइए । तेरे अंग-अंग मैं मिठाई औ लुनाई भरी , 'मतिराम' कहत प्रगट यह पाइए ; नायक के नैननि मैं नाइए सूधा सों सब , सौतिन के लोचननि लौन सो लगाइए । १०४॥* सिद्धविषया हेतूत्प्रेक्षा उदाहरण प्रबल बिलंद बर-बारनि के दंतनि सौं, बैरिन के बाँके-बाँके दुरग बिदारे हैं; छं० नं० १०३ बासव=इन्द । आपगा=नदी।

  • देखो रसराज ३० स्वाधीनपतिका ।