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मतिराम-ग्रंथावली


ऊँचे मन, ऊँचे कर, ऊँचै - ऊँचै करी दै के, ऊँचे करे भमि के भिखारिन के भाग हैं ॥ ११९ ॥ सजल जलद जिमि झलकत मदजल, छिति-तल हलत चलत मंद गति मैं ; कहै 'मतिराम' बल बिक्रम बिहद्द सुनि, गरजनि परै दिगवारन' बिपति मैं। सत्ता के सपूत भाऊ तेरे दिए हलकनि, बरनी उँचाई कबिराजन की मति मैं ; मधुकरकुल करटीनि के कपोलनि तें, उड़ि उड़ि पियत अमृत उड़पति मैं ॥ १२० ॥ द्वितीय संबंधातिशयोक्ति-लक्षण उदाहरण चरन धरै न भूमि बिहरै तहाँई जहाँ, फूले-फूले फूलन बिछायो परजंक है ; भार के डरनि सुकुमारि चारु अंगनि मैं, करत न अंगराग कुंकुम को पंक है। कहै 'मतिराम' देखि वातायन बीच आयो, आतप मलीन होत बदन - मयंक है; कैसे वह बाल लाल बाहर बिजन आवै, बिजन-बयारि लागे लचकत लंक है॥१२१॥* अंगनि उतंग जंग जैतवार जोर जिन्हैं, चिक्करत दिक्करि हलत कलकत हैं; १ दिगदंतिन, २ करनीक, ३ अमिय, पियूष । छं० २० १२० बिहद्द =बेहद, अत्यधिक । हलकनि=समूह । करटीनि=हथिनियाँ । उड़पति= चंद्रमा ।

  • देखो रस राज उदाहरण मध्यम दूती ।