पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३७९

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ललितललाम

HereTapg ललितललाम कहै 'मतिराम' सैन सोभा के ललाम अभि- राम जरकस झल झाँपे झलकत हैं। सत्ता के सपूत राव भावसिंह रीझि देत, छहूँ ऋतु छके मदजल छलकत हैं; . मंगन की कहा है, मतंगनि के माँगिबे को, मनसबदारन के मन ललकत हैं ॥ १२२ ॥ अक्रमातिशयोक्ति-लक्षण जहाँ हेतु अरु काज मिलि, होत एक ही अंग। अक्रमातिशय उक्ति तहँ, बरनत कबि रसरंग ।। १२३ ॥ उदाहरण जथपति पैठ्यो पानी' पोषत प्रबलमद, _____ कलभ करेनु-कनि लीनै संग सुख ते ; ग्राह गह्यौ गाढ़े बैर पीछले के बाढ़े भयो, __बलहीन बिकल' करन दीह दुख ते । कहै 'मतिराम' सुमरत ही समीप लखे, ___ऐसी करतूति भई साहिब सुरुख ते; दोऊ बातें छ्टी गजराज की बराबर ही, पाँव ग्राह-मुख ते पुकार निज मुख ते ।। १२४ ॥ PHERS १ मानी, २ भयो बदन बिकल है, ३ कैसी। छ० नं० १२२ दिक्करि=दिग्गजें । मंगन की कहा"ललकत हैं= भिखारियों की कौन कहे, बड़े-बड़े मनसबदारों के मन में भावसिंहजी से हाथी माँगने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है । छं० नं० १२४ कलभ = हाथी का बच्चा। करेनु-कनि-करेणु =हथिनी। दीह-दीर्घ=बड़ा । सुरुख अच्छे रुखवाला, सत्सहानुभूति-पूर्ण ।