पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/३८३

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ललितललाम

568NCELLERSON S TRA ललितललाम शब्दार्थावृत्ति-उदाहरण मंदर-बिलंद मंद गति के चलैया एक, __पल मैं दलैया पर-दल बलखानि के; मदजल झरत झुकत जरकस' झूल , झालरिनि झलकत अँड मुकूतानि के। ऐसे गज बकसे दिवान दुहूँ दीननि कौं, 'मतिराम' गुन बरनैं उदारि पानि के ; फौज के सिंगार हाथी और महिपालन के , मौज के सिंगार भावसिंह महादानि के ॥१४०॥ सकल सहेलिनि के पीछे-पीछे डोलति है , मंद-मंद गौन आजु आपु ही करत है ; सनमुख होत सुख होत 'मतिराम' जब , पौन लागे घुघट के पट उघरत है। जमूना के तट बंसीबट के निकट , नंदलाल पै सँकोचन से चाह्यो ना परत है; तन तौ तिया को बर भाँवरे भरत, मन साँवरे बदन पर भाँवरे भरत है ।।१४१॥* प्रतिवस्तृपमा-लक्षण पद समूह जुग धर्म जहँ, भिन्न पदनि सौं एक । परगट प्रतिबस्तूपमा तहँ, कवि कहत अनेक ॥१४२॥ १ जरबाफ । छ० नं० १४० मंदर-बिलंद मंदराचल पर्वत के समान ऊँचे । पर-दल-शत्रुदल । जरकस झूल=जरी के बहुमूल्य वस्त्र की झूल । दुहूँ दोननि कौं हिंदू और मुसलमानों को।

  • देखो रसराज उदाहरण विहृत-हाव ।

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