पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४०३

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TARYATARRITOR

- - mome ness ललितललाम लाल मुख-इंदु नैन बाल के चकोर, बालमुख-अरबिंद, चंचरीक नैन लाल के ॥ २४४ ॥ प्रथम विशेष-लक्षण जहाँ अधेय बखानिए बिन प्रसिद्ध आधार । कबिजन तहाँ बिशेष कहि बरनत बुद्धि उदार ॥ २४५॥ उदाहरण चलौ लाल वाकी दशा, लखौ कही नहिं जाय । हियरे है सुधि रावरी, हियरो गयो हिराय ॥ २४६ ।। द्वितीय विशेष-लक्षण जहँ अनेक थल मैं कछ बात बखानत एक । तहँ विसेष औरो कहत कबिजन बुद्धि बिबेक ॥ २४७ ॥ उदाहरण मंदर बिंध्य सुमेर कलिंद' गिरिंदन कौं हिम-सैल हि साजै; देवनदी सम तीनहु लोक पबित्र' करै सब जीव समाज । छाय रही 'मतिराम' कहै छिति-छोरनि छीरधि की छबि छाजै; पूरब पछिम उत्तर दक्खिन भाऊ दिवान की कीरति राजै ॥ २४८ ॥ तृतीय विशेष-लक्षण करत कछू आरंभ ते जहँ असक्य कछ, और। तहँ बिसेष औरो कहत कबि-कोबिद सिरमौर ॥ २४९ ॥ १ किकिंध, २ पुनीत । छं. नं० २४४ लिए ब्रत-से निमेखनि के मानो पलक न लगने देने का व्रत ले लिया हो । चंचरीक=भौंरा । छं० नं. २४६ हियरे". हिराय नायिका के हृदय में आपकी स्मृति का निवास अब भी है पर स्वयं उसका हृदय न-जाने कहाँ खो गया है अर्थात् उसको आपकी याद तो बनी है पर हृदय ठिकाने नहीं है।