पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४०६

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ammersion ४०२ RAINER RAINISTRabirunanatanumbnamisamanand S HINIONLINE D IRSamanemamim- MAN Camerandsocine Mirmire मतिराम-ग्रंथावली क्रोध लोभ कहँ रचै, काम कहँ लोभ करत पुनि; संग जनित जग काम कहत 'मतिराम' बेदधुनि । इहिं विधि बिबेक कर संग तजि सुमिरत मन संकर चरन । संसार सकल संताप तजि लहत परम आनंद-घन ॥२५८॥ एकावली-लक्षण एक अर्थ लै छोड़िए, और अर्थ लै ताहि । अर्थ पाँति इमि कहत हैं, एकावली सराहि ॥२५९।। उदाहरण सुरजनसुत नप भोज भूमि सूर-जन रच्छाकर; भोज-तनय नप रतन भोज सम दानि बिदितबर। रतनपुत्र नप नाथ रतन जिमि ललित जोतिमय; . नाथ नंद तिमि सत्रुसाल नरनाथ महोदय । जग सत्रुसालनंदन नवल सत्रुन उर सालत रहिय; नृपभावसिंह मतिराम' कहि सुजस अमलप्रतिदिनल हिय।।२६०।। ____ मालादीपक-लक्षण जहँ दीपक एकावली होत दुहुनि को जोग । मालादीपक नाम तहँ वरनत सब' कबि लोग ॥२६१॥ उदाहरण महाबीर सत्रुसाल नंद राव भावसिंह, हाथ मैं तिहारे खग्ग जीति को जमान है; परम पुरुष परमेस्वर कृपा ते आज, तिहारो सरूप रज लाज को निधान है। अरनि के मुंडन सौं रावरो रिझायो हर, कीन्हौ 'मतिराम' बकसीस को बखान है; १ कहत है तहाँ सकल, २ कर । छं० नं० २६२ ज़मान=ज़माना, जामन ।