पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४०५

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SPORATRISATARIAOSSE RECESS m ललितललाम ४०१ -


ifeim- द्वितीय व्याघात-लक्षण जहाँ क्रिया की सुकरता बरनत काज बिरोध । तहाँ कहत ब्याघात हैं औरौ बुद्धि-बिबोध ॥ २५३।। उदाहरण ज पै सखी ब्रज गाँव मैं घर-घर चलत' चवाव। तो हरिमुख लखि देति किन नैन चकोरनि चाव ।।२५४॥ - प्रथम हेतुमाला-लक्षण पूरब-पूरब हेतु जहँ, उत्तर-उत्तर काज । तहाँ हेतुमाला कहत, कबि-कोबिद सिरताज ॥२५५।। उदाहरण मन प्रगटित हरि प्रीति, प्रीति तिहिं तेज प्रकासिय ; प्रबल तेज तिहिं जगत जीव रच्छा उल्लासिय। तिहिं रच्छा बढि धर्म, धर्म तिहिं संचित संपति ; तिहिं संपति किय दान, दान तिहिं सुजस बिमल अति । 'मतिराम' सुजस दिन-प्रति बढ़त, सुनत दुवन-उर फट्टियउ; भुव भावसिंह सत्रुसालसुत इहि बिधि चरित प्रगट्टियउ॥२५६।। द्वितीय हेतुमाला-लक्षण उत्तर-उत्तर हेतु जहँ, पूरब-पूरब काज । इहौ हेतुमाला कहत, कबिजन बुद्धि-जहाज ॥२५७।। उदाहरण दुःख मूल गनि पाप पाप, कहँ कुमति प्रकासै; कुमति मोह बिस्तरै, क्रोध मोहै उल्लास । १ सहज, २ अति, ३ दिन-दिन, ४ सुव । छं० नं० २५३ सुकरता सहज में हो जाने का काम । छं० नं० २५६ दुवन-उर=शत्रु-हृदय । फट्टियउ=फटता है । प्रगट्टियउ=प्रकट किया। ROTi ty/- - . .