पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४०९

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४०५
ललितललाम

S ४०५ । ललितललाम गायनि कौं बकसी कसाइनि की आयु' सब, गायनि की आयु सो कसाइनि कौं बकसी ॥२७२॥ परिसंख्या-लक्षण और ठौर ते मेटि कछ , बात एक ही ठौर । बरनत परिसंख्या कहत,कबि-कोबिद सिरमौर ॥२७३।। उदाहरण सोवत ही मोह-गुन, सुजस को लोभ, तरुबरनि कौं छोभ जहाँ करत बयारिए ; कहै 'मतिराम' एक मान बिना मानिनी, सयान बिना चित्रनि के रूप निरधारिए। तुरंग चपल चंद्रमंडल बिकल बेला, __कुंद हैं बिफल जहाँ नीच गति बारिए ; दानहीन कलभ कदलिदल कंपजुत, राव भावसिंहजू के राज मैं निहारिए ॥२७४॥ १ मीचु । छं० नं० २७४ भावार्थ-राव भावसिंहजी के राज्य में अगर कोई काँपता है तो वह केले क पत्ता है (और सब निर्भय हैं), अगर कोई दान-हीन (जिसको पारितोषिक न मिला हो) है तो वह हाथी का बच्चा है (कलभ इस दृष्टि से दान-हीन है कि बच्चा होने से उसके दान--मदजल-नहीं बहता है), अगर कोई नीच-गामी है तो जल है, अगर कोई फलवान् नहीं है तो बेला और कुंद हैं, अगर किसी की कला क्षीण है तो वह चंद्रमा है, अगर किसी में चपलता है तो वह घोड़ा है, अगर कोई सज्ञान (सयान बिना) नहीं है तो वह चित्रों में बने स्वरूप हैं, अगर किसी का मान-मोचन (मान बिना) होता है तो वह मानिनी नायिका हैं, अगर कोई क्षुब्ध (छोभ) होता है तो वह वायु-विधूमित वृक्ष है, अगर किसी बात का लोभ है तो सुयश का और यदि कोई सुषुप्त है तो वह मोह है। Notel