पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४१९

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ललितललाम

RSSCARE ललितललाम गुण से दोष-उदाहरण प्रतिबिंबित तो बिंब मैं भतल भयो कलंक । निज निर्मलता दोष यह मन में मानि भयंक ॥३२६॥ मुद्रा-लक्षण प्रकृत अर्थ पर पदनि सौं सुद्ध प्रकासत अर्थ । मुद्रा तासौं कहत हैं कबि मतिराम' समर्थ ॥३२७॥ उदाहरण देह दीप दीपति दिपै बदन-चंद की जोति । दामिनि दुति मुसकानि मृदु सुख की खानि उदोति ॥३२८॥ रत्नावली-लक्षण प्रस्तुत अर्थनि को जहाँ क्रम ते थापन होय । तहाँ कहत रत्नावली कबि रस बुद्धि समोय ॥३२६।। ___ उदाहरण जीतय जे रावत ऐरावत सौं जंग अंग, पुंडरीक के गनत पुंडरीक छद हैं; बामन बामन, मृदु कुमुद कुमुद गर्न, - अंजन के जैतवार अंजन से कद हैं। पुष्पदंत हू के दंत तोरयो ज्यौं पुहुप सार, छीन लेत सार्बभौम हू के सदा मद हैं; प्रबल प्रतीक सुप्रतीक के जितैया रैया, र राव भावसिंह तेरे दान के दुरद हैं ॥३३०॥ । छं० २० ३२८ दिपै प्रकाशित होती है । छं० नं० ३३० ऐरावत, पूंडरीक, बामन, कुमुद, अंजन, पुष्पदंत, सार्वभौम तथा सुप्रतीक अष्ट दिग्गज के नाम हैं।