पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४३३

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ललितललाम FARRIEO S द्वितीय हेतु-लक्षण जहाँ हेतुमत हेतु को बरनत एक सरूप। तहाँ हेतु ओरौ कहत, सब कबि, पंडित-भूप ॥३९४ उदाहरण नैननि को आनंद है जिय की जीवनि जानि । प्रगट दरप कंदर्प को तेरी मृदु मुसकानि ॥३९५।। तृतीय हेतु-लक्षण जहँ समर्थिबो अर्थ को प्रगट समर्थन होय । तहाँ हेतु औरौ कहत कबि कोबिद सब कोय ॥३९६॥ उदाहरण भौंह कमान के, लोचन-बान कै लाजनि मारि रहै बिसवासी; गोल कपोलनि केलि करै भयो कुंडल लोल हिंडोल' बिलासी। कोट किरीट, किए 'मतिराम' करै चढ़ि मोर पखानि मवासी; क्यौं मन हाथ करौं सजनी बनमाल मैं बैठि भयो बनबासी ॥३९७।। देखि महिपालनि की कंपति है छाती ऐसी, संपति सहित देत जाचकनि दान है ; देत सरनागत नरेसनि अभयदान, र महाबीर वैरिन कौं देत भयदान हैं। कहै 'मतिराम' दिल्लीपति कौं बड़ाई देत, सत्रुसाल नंद बलाबंध सुलतान है ; राव भावसिंह को सुजस बखानियत, लीबे को जहान सब दीबे कौं दिवान है ॥३८॥ १ डोलहि डोल, २ पैठि, ३ मान । छं० नं० ३९५ कंदर्प =कामदेव । छं० नं० ३९७ हिंडोल बिलासी = हिंडोला झूलनेवाला । मवासी=डकैती।