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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४३२

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४२८ मतिराम-ग्रंथावली ANDAR R - उदाहरण कोप करि संगर मैं खग्ग कौं पकरि के, . बहायो बैरि-नारिन को नैन-नीर-सोत है ; कहै ‘मतिराम' कीन्हौं रीझि कै निहाल मही- पालनि के रूप सब गुनिन को गोत है। जागै जग साहिब सपूत सत्रुसालजू को, दस हूँ दिसानि जस अमल उदोत है; खलनि के खंडिबे कौं मंगनि के मंडिबे कौं, महाबीर भावसिंह भावसिंह होत है ॥३९०॥ हेतु-लक्षण जहाँ हेतुमत साथ ही कीजे हेतु बखान । तहाँ हेतु भूषन करत कबि ‘मतिराम' सुजान ॥३९१॥ उदाहरण और सकै कहि को 'मतिराम' सतासूत के बरनै गून बानी; राव सही दरियाव जहान को आय जहाँ ठहरात है. पानी । काम-तरोवर, धेनु औ पारस नैकु न मंगन के मन मानी ; दारिद-दैत्य बिदारिबे' कौं भई भाऊ दिवान की रीझि भवानी ॥ ३९२॥ दरपन मैं निज रूप लखि, नैननि मोद उमंग। तियमुख पियबस करन को, बढ़यो गर्ब को रंग ॥३९३॥ PORN १ बिदारन । छं० नं० ३९० संगर-युद्ध । खग्ग-खङगतलवार । छं० नं० ३९२ काम तरोवर "मानी भिक्षुक लोगों की निगाह में कल्पवृक्ष, कामधेनु और पारस पत्थर कुछ नही जंचते हैं । दारिद=दारिद्रय ।