पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/४३५

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मतिराम-सतसई वंदना मो मन तम-तोमहि हरौ, राधा को मुख-चंद। बढ़े जाहि लखि सिंधु लौं, नँद-नंदन आनंद ॥ १ ॥ मुंज गुंज के हार उर, मुकुट मोर पर पुंज। कुंजबिहारी बिहरियै, मेरेई मन-कुंज ॥ २ ॥ रति नायक सायक सुमन, सब जग जीतन वार । कुबलय दल सुकुमार तन, मन कुमार जय मार ॥ ३ ॥ राधा मोहन लाल को, जाहि न भावत नेह। परियौ मुठी हजार दस, ताकी आँखिनि खेह ॥ ४ ॥ __ सुन्दरी-वर्णन नागरि-नैन-कमान-सर, करत न ऐसी पीर। जैसें करत गँवारि के, दृग-धनुही के तीर ॥ ५ ॥ तन रोचित रोचन लहैं, रंचन कंचन गोतु। पिया पिया बासो दिया, छिया-छिया जग होतु ॥ ६ ॥ छं० नं० १ तम-तोम =अंधकार । मो मन आनंद=श्रीराधाजी का मुखचंद्र मेरे मन में व्याप्त अंधकार को दूर करे । जिस प्रकार से चंद्रमा को देखकर समुद्र में लहरें उठने लगती हैं उसी प्रकार से श्रीराधिकाजी के मुखचंद्र को देखकर श्रीकृष्ण का आनंद-वृद्धि-लाभ करे। छं० नं० २ मुंज गुंज के हार उर=मूंज (एक प्रकार की घास जिसको बटकर रस्सी बनाते हैं ) और घुघची की बनी (घुघची के दाने मूंज की रस्सी में पिरोए हुए) मालाएँ हृदय पर हैं। मन-कुंज=मन- रूपी कुँज । छं० नं ३ मन कुमार जय मार=मनोज--काम की जय हो छं० नं० ४ खेहि =धूल ।