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मतिराम-ग्रंथावली


सुत को सुनो पुरान यों, लोगनि कह्यो निहोरि।। चाहि-चाहि जुत नाह मुख, मुसिक्यानी मुख मोरि ॥ ७ ॥ कत चौक सीमंत की, बैठी गाँठि जुराइ । पेखि परौसी कों पिया, चूंघट मैं मुसिक्याइ ॥ ८ ॥ गुरुजन दूजे ब्याह कों, प्रति दिन कहत रिसाइ। पति की पति राखे बह, आपून बाँझ कहाइ॥ ९ ॥ वरषा रितु बीतन लगी, प्रति दिन सरद उदौति । लहलह जोति जुवार की, अरु गँवारि की होति ॥१०॥ नए बिरह-अँसुवानि को, छिन-छिन होत उदोत । अँखियनि लग्यो अपार वह, तन-पानिप को सोत ॥११॥ नवल नेह में दहनि की, लखी अपूरब बात। ज्यों सूखति सब देह है, त्यों पानिप अधिकात ॥१२॥ कत सजनी है अनमनी, अँसुवा भरति ससंक। बड़े भाग नँदलाल सों झूटह लगत कलंक ॥१३॥ औगुन बरनि उराहनो, ज्यों-ज्यों ग्वालिन देहि । त्यों-त्यों हरि तन हेरि हँसि, हरषति महरिहि येहि ॥१४॥ _छं० नं० ७ सुत को निहोरि=लोगों ने आग्नह करके कहा कि संतानोत्पत्ति के लिये पुराण सुनो । छं० नं० ९ पति कमजोर है इससे संतानोत्पत्ति नहीं होती है। पति के माता-पिता उनको नित्य डाँटते हैं कि दूसरा ब्याह कर ले जिससे संतान हो । यह स्त्री बाँझ है इससे औलाद न होगी। बहू रहस्य की बात जानती है अगर उसे प्रकट कर दे तो पति की मर्यादा भंग हो जाय इसलिये उनकी मर्यादा रखने को बाँझ कहलाता पसंद करती है।

  • देखो रसराज उदाहरण परकीया।

देखो रसराज तथा ललितललाम । देखो रसराज उदाहरण शिक्षा तथा ललितललाम उदाहरण लेस । ।