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मतिराम-ग्रंथावली

⟨poem⟩ खेलत मार सिकार है, डोरे पास समेत । नैन मृगन सों बाँधि कै, नैन मृगन गहि लेत ॥३३॥

मृगपति जित्यो सुलंक सों, मृगलच्छन मृदु हास । मृगमद जित्यो सुनैन सों, मृग मद जित्यो सुबास ॥३४॥ छप छपाए अब नहीं, मैं पायो लखि अंक । नाहिंन जू पै कलंक तौ, कैसे बदन ससंक ॥३॥ चौंसठि कला बिलास जुत, बदन कलानिधि पेखि । दुतिया की देखें कला, को दुति या की देखि ॥३६॥ पावै ऐपन ओपनी, कहै कुरंटक , कौन । सोनो सोन जूही लहै, ललित देह दुति सोन ॥३७॥ तामें अनमिष नैनता, किए लाल बस ऐन ॥ अनमिष नैन सुने न ए, निरखत अनमिष नैन ॥३८॥ नारि नैन के नीर को, नीरधि बढ़े अपार । जारे जौन बियोग को, बड़वानल की झार ॥३९॥* जातरूप रूपहि लखति, बाँधत प्रभु मन ऐन । निपट निहारे निलज ए, लोनि हरामी नैन ॥४०॥ रोस न कर जौ तजि चल्यो, जानि अंगार गवार। छितिपालनि की माल में, तैहीं लाल सिंगार ॥४१॥ कहों भयो ‘मतिराम' हिय, जो पहिरी नँदलाल । लाल मोल पावै नहीं, लाल गुंज की माल ॥४२॥ गुन औगुन को तनकऊ, प्रभु नहिं करत बिचार। केतक कुसुमन आदरत, हर सिर धरत कपार ॥४३॥ छं० नं० ३३ मृगन=अन्वेषण, खोज । मृगन=हरिण । छं० नं० ३६ दुतिया की देखि=इस नायिका की अंगदीप्ति (दुति या की) देखकर द्वितीया की चंद्रकला (दुतिया की कला) कौन देखे ।

  • दे० रसराज।

दे० ललितललाम उ० अर्थांतरन्यास । Pr-ChanARANAS EMES meena