नायिका भेद
नायिका का उपयुक्त पात्र नायक त्यागी, कृती, कुलीन, समृद्धि-मान्, रूपयौवनोत्साही, दक्ष, लोकरंजक, तेजस्वी, विदग्ध और सुशील होना चाहिए। उसके अनुकूल, दक्षिण, धृष्ट और शठ-नामक चार भेद माने गए हैं। अनुकूल नायक की प्रीति सदा अपनी विवाहिता पत्नी से रहती है। यह परनारी की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखता। उसके विषय में पत्नी को विवश होकर कहना पड़ता है—
सपनेहूँ मनभावतो करत नहीं अपराध;
मेरे मन ही मैं रही सखी, मन की साध।
नायिका मान करना चाहती है, पर अनुकूल नायक ऐसा अवसर ही नहीं आने देता कि मान कर सके। संयोगावस्था में तो यह दशा रहती है; जब कार्य-वश नायक को परदेश जाना पड़ता है, तो वहाँ भी अपनी पतिव्रता स्वकीया पत्नी के ध्यान ही में मग्न रहता है। वह उस अवसर की बाट ही जोहा करता है, जब प्रियतमा के दर्शन हों। अनुकूल प्रोषित नायक का वर्णन भी मतिरामजी ने अपूर्व ही किया है—
"प्यार-पगे बचन-पियूष पान करि करि
उमँगि-उमँगि उर आनंद बिसेखिहौं
'कवि मतिराम' तन-तपनि बुझाय जैहै,
तबै निज जनम सफल करि लेखिहौं।
ही तल को सीतल करन चारु चाँदनी-सी
मंद, मृदु मुसकानि अनमिख पेखिहौं;
है तब निसा मेरे लोचन-चकोरनि की,
जब वाको आनन-अमल इंदु देखिहौं।"
दक्षिण नायक अपनी अनेक प्रियतमाओं पर समान प्रीति रखता है। कवि उसके विषय में कहता है—