४८० मतिराम-ग्रंथावली S AISITINEMA RANE । कहा करों परबस भई, लखि मुख रूप रसाल । बेची मैं नंदलाल है, लीनी मैं नंदलाल ॥४७२॥ निठुराई नहिं निठुर पै, कहति साँच कित बात। लगे कंटकित कुचनि में, भए कंटकित गात ॥४७३॥ कहा भयो सो तू भटू, गुन गनमय सब देह । जोबनवारी तो सकल, जो बनवारी नेह ॥४७४।। मुकत माल मंडित लसै, बाल उरोज उतंग । नखत पाँति सोभित मनो, बिबि सुमेरु को शृंग ॥४७५॥ दीप-जोति के जाल से, जगमगाति अति अंग। मानस मानस के चपल, उड़ि-उड़ि परै पतंग ॥४७६॥ निंदति अति अभिराम तौ, इंदीबरनि अनुप । झलकति तो अँखियानि में, अति घनस्याम सरूप ॥४७७।। लसत सुरत स्रम सलिल कन, ललित बाल नंदलाल।। फली मनो मुकता फलनि, कंचन बेलि तमाल ।।४७८।। बिहसत नील दुकल से, लसत बदन अरबिंदु । झलकत जमुना रूप में, मानो पूरन इंदु ॥४७९॥ जर तारी सारी ढके, नैन लसति मतिराम । मनो कनक पंजर परे, खंजरीट अभिराम ॥४८०॥ कान्हकरज-छत देत यों, सोहत बाल उरोज । सरसरोज सों संभु कौं, मारत मनो मनोज ॥४८१॥ स्याम नैन प्रतिबिंब जुत, तिय के उरज उतंग । मनो मनोज सरोज सर, लगे ईस के अंग ॥४८२।। छं० नं० ४७२ बेची नंदलाल कामदेव ने दलाल की हैसियत से मुझे बेंच डाला और मुझको नंदलाल ने मोल ले लिया। मैं नँदलाल- मैंन+दलाल । मैं नंदलाल=मैं+नंदलाल । छं० नं० ४७४ जोबनव- वारी=१ यौवनावस्था की, २ जो कृष्ण। छं० नं० ४७५ बिबि= दो । छं० नं० ४८१ कान्हकरज-छत=कृष्ण का हाथों से दलमलना। Instaminews
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