अनुराग का रंग लाल माना गया है।
(५) सात्त्विक भावों में 'प्रलय' भाव का वर्णन मतिराम ने बहुत अपूर्व किया है। प्रियतम से प्रत्यक्ष होने के बाद से उनकी मधुर मुस्कान नायिका के मन में ऐसी बस गई है कि वह सदा उसी का ध्यान किया करती है। उसको यह भान होता है कि प्रियतम सामने मुस्कराता हुआ खड़ा है। बस, उसके नेत्र भी निर्निमेष होकर रह जाते हैं। उसके शरीर की संचलन-शक्ति बंद हो गई है। ज्ञान भी जाता रहा है। बिलकुल स्थिर बैठी है, मानो कोई दीपक निर्वात स्थान में जल रहा हो—
"जा दिन ते छबि सो मुसुकान कहूँ निरखे नंदलाल बिलासी,
ता दिन ते मन-ही-मन में 'मतिराम' पियै मुसकानि सुधा-सी।
नेकु निमेष न लागत नैन, चके चितवै तिय देव-तिया-सी;
चंद-मुखी न चलै, न हिलै निरबात निवास मैं दीप-सिखा-सी।"
कहते हैं, देवताओं के नेत्रों में पलक नहीं गिरती है। "निरबात निवास में दीप-सिखा-सी" इस पद में कैसी अच्छी उपमा है!
(६) (क) जहाँ थोड़े ही भूषण-वसन धारण करने से नायिक की अपूर्व शोभा प्रकट होती है, वहाँ 'विच्छित्ति' हाव माना गया है।
नायिका-विशेष ने केवल श्वेत साड़ी धारण की थी; परंतु उसकी उस श्वेत साड़ी के संयोग से ही ऐसी शोभा उमड़ पड़ी कि सब सौतों के मुँह काले पड़ गए। उधर प्रियतमजी उसी साड़ी के रंग में ऐसे रँगे कि श्याम से अनुराग वश लाल हो गए। कैसी चतुरता से भरी उक्ति है—
"सेत सारी ही सों सब सौतें रंगी स्याम रँग,
सेत सारी ही सों स्याम रंगे लाल रंग में।"
(ख) पति द्वारा अंग-विशेष के स्पर्श होने से संभ्रमित होना हाथ आदि का संचालन करना नायिका में कुट्टमित हाव प्रकट करता