पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/५४

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मतिराम-ग्रंथावली

wilion- मतिराम-ग्रंथावली "भूलि हुलास-बिलास गए, दुख ते भरिकै अँसुवा उमहे हैं; ईछनि-छोरनि ते न गिरे, मनो तीछन कोरन छेदि रहे हैं।" प्रौढ़ा विप्रलब्धा जब संकेत-स्थल को जा रही थी, तो उसका मुख-चंद्र ऐसा विहसित था कि बेचारा चंद्रमा लज्जित-सा हो रहा था; परंतु जब निर्दिष्ट स्थान में स्वामी से भेंट नहीं हुई, तो उसके मुख पर ऐसी विवर्णता छा गई कि मुख-चंद्र की सारी शोभा फीकी पड़ गई। अब चंद्रमा की पारी थी। मानो इस विपत्ति के अवसर पर वह नायिका को हँस रहा था। कैसी मनोहर उक्ति है- "चंद को हँसत तब आयो मुख-चंद, अब चंद लाग्यो हँसन तिया के मुख-चंद को।" (३) नवविवाहिता वधू को ले जाने के लिये पितृगह से लोग आए हैं। पति से वियोग होगा, इस कष्ट को न सह सकनेवाली मध्या प्रवत्स्यत्प्रेयसी ने रात जागकर बड़े सोच-विचार में बिताई है । उसकी ऐसी दशा देखकर कोई कहता है- "तू न बहू को पठाय अरी, यह देखि दुहून की प्रीति सुहाई ; रोए-से लोचन, मोए-से रोचन, सोए न, सोचन राति बिताई।" अंतिम पद कितना चमत्कार-पूर्ण है ! प्रौड़ा प्रवत्स्यत्प्रेयसी की सिफ़ारिश भी सखी अच्छे ढंग से करती है- "कोपन ते किसलय जब होयं कलिन ते कौल ; तब चलाइयो चलन की चरचा नागर नौल।" उद्दीपन की इस सामग्री की ओर यदि नायक का ध्यान न जाय, तो वह अज्ञ ही है। (४) एक स्थल पर मध्या नायिका का मान-मोचन ऐसे अच्छे ढंग से हुआ है कि- "रिस ही के आँसू रस-आँसू भए आँखिन मैं, रिस की ललाई, सो ललाई अनुराग की।" Aadisia Lection - - SLIMADIREDM o nalitincode diministration .