पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/६१

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समीक्षा

समीक्षा (घास-फूस) उसके झोंके खाकर कैसा झुक जाता है, विशालकाय वृक्ष को वह कैसे सहज में तोड़ डालती है, तथा उसके प्रबल प्रवाह के सामने घनघोर मेघ-मंडल भी क्षण-भर में कैसा छिन्न-भिन्न हो जाता है ! भावसिंहजी का तेज-पुंज भी शत्रु-मंडल का पराभव वैसे ही करता है, जैसे रुई, तृण, वृक्ष और बादल का वायु करती है। जिस क्रम से उड़ना, नवना, टूटना और फूटना क्रियाएं दी हुई हैं, उसी क्रम से आगे तूल, तिनका, तरुवर और तोयद दिया हुआ है । तेज-पुंज में पहले मारुत के गुण आरोपित किए गए हैं। इससे पहले मारुत के प्रभाव का उल्लेख है । इसके बाद 'मार्तंड' के गुण देखिए। सूर्योदय होते ही रात में पाई जानेवाली अनेक वस्तुएँ मिट जाती हैं। भुवन-भास्कर का प्रभाव ही ऐसा है ! अनेक वस्तुएँ छिन्न-भिन्न हो जाती हैं, अनेक पदार्थं घोर विकल हो पड़ते हैं, तथा बहुत-सी वस्तुओं के सूखने की नौबत आ जाती है । उदाहरण के लिये देखिए कि तारा-मंडली का लोप, अंधकार का छिन्न-भिन्न होना, चंद्रदेव की विकलता तथा जल का शोषण प्रचंड मार्तड के उदित होने पर ही तो होता है। अब देखिए, जिस क्रम से मिटना, फटना, विकल होना और सूखना क्रियाओं का प्रयोग हुआ है, ठीक उसी क्रम से तारा, तिमिर, तमीपति और तोय का न्यास है। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि भावसिंह का तेज-पुंज शत्रु-रूप उपर्युक्त पदार्थों पर समान' प्रभाव प्रदर्शित करता है। मारुत और मार्तंड के प्रभाव- प्रदर्शन के लिये आठ क्रियाओं का प्रयोग हुआ है। जिन-जिन वस्तुओं पर उनका प्रभाव हुआ, उनका आगे उल्लेख है। जिस क्रम से क्रियाएँ हैं, ठीक उसी क्रम से उन वस्तुओं का स्थान है, पहली चार क्रियाएँ मारुत की प्रभाव-सूचना देती हैं, तो पहली चार चीजें भी वही वगित हैं, जिन पर मारुत का प्रभाव पड़ा है। दूसरी चार क्रियाएँ सूर्य का प्रभाव दिखलाती हैं, तो पाँच से लगाकर आठ तक वणित चीजें