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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/७२

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मतिराम-ग्रंथावली

यह अर्थ कदापि नहीं कि भाषा द्वारा अभिव्यक्त होनेवाला भाव अलंकारों के बोझ से इतना दबा दिया जाय कि कुचल ही जाय। अलंकार भाव की रमणीयता बढ़ाने के लिये हैं, न कि भाव को सामने से पीछे ढकेलने के लिये।

कविता की भाषा में कुछ विशेषताएँ हैं। 'कवि-स्वातंत्र्य' से लाभान्वित होकर कविगण अपनी भाषा में साधारण गद्य की भाषा से कुछ अलगाव कर लेते हैं। जिन भाषाओं का व्याकरण अधिक जटिल है, उनमें वह अलगाव कम होता है, पर जिन भाषाओं में व्याकरण भाषा का अनुगमन करता है, उनमें यह अलगाव अधिक दिखलाई पड़ता है। अनेक अप्रचलित शब्दों का प्रयोग करते रहना, प्रचलित शब्दों को तोड़-मरोड़ लेना, व्याकरण की उतनी परवा न करना आदि अनेक ऐसी बातें हैं, जो कवियों की भाषा में पाई जाती हैं। हिंदी की व्रजभाषा-कविता में एवं अँगरेज़ी के कवियों की भाषा में यह अलगाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। कविवर शेक्सपियर के विषय में एक विद्वान् समालोचक की राय है कि व्याकरण-संबंधिनी प्रत्येक प्रकार की निरंकुशताओं का प्रयोग उनकी कविता में प्रचुर परिमाण में पाया जाता है। हिंदी भाषा के सूर, तुलसी, देव और बिहारी आदि सभी कवियों ने शब्दों की तोड़-मरोड़ की है। इन दो-एक विशेषताओं के होते हुए भी भाषा के ऊपर दिखलाए गुणों का संपूर्ण समावेश सत्काव्य में अवश्य पाया जाता है। यही क्यों, एक विद्वान् की तो राय है कि जहाँ पर सर्वोत्तम*[] शब्द सर्वोत्तम क्रम से स्थापित हों, वही कविता है। महाकवि टेनिसन की राय+[] है कि कभी-कभी कविता के एक ही शब्द में सारी कलाओं का सौंदर्य उमड़


  1. *"Poetry is the best words in their best order."
  2. +"All the charm of all the muses often flowing in a lovely word."

    TENNYSON