पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१०६

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। जिस पर था। स्त्रियाँ प्रायः रंगीन कपड़े पसंद करती थीं। बौद्ध साधु प्रायः लाल, हिंदू संन्यासी भगवा और जैन ( श्वेतांबर ) साधु श्वेत या पीला कपड़ा पहनते थे। विधवाएँ प्राय: सफेद कपड़े पहनती थीं। राजा लोग सिर पर रत्नजटित मुकुट धारण करते थे। साधारण लोग पगड़ी ( उणीप ) वाँधते थे। बालों के शृगार की तरफ भी काफी ध्यान दिया जाता था। पुरुप बड़े बड़े याल रखते थे। लियाँ भिन्न भिन्न प्रकार के अत्यंत सुंदर केश- विन्यास करती थीं, जिनका पता उस समय की बनी हुई मूर्तियों से लगता है। बालों का पीछे जूड़ा भी वाँधा जाता था, सुगंधित फूल लगाए जाते थे; सिर पर तरह तरह से मोतियों की लड़े और रत्नजटित प्राभरण भी धारण किए जाते थे। ब्राहामा लोग सिर और दाढ़ी के बाल कटवाते थे। क्षत्रिय लोग लंबी लंबी दाढ़ी रखते थे, जैसा कि बाण के एक सेनापति के वर्णन से पता लगता है। बहुत से लोग पैरों में जूते नहीं पहनते थे । शरीर को सजाने के लिये गहनों का भी बहुत प्रयोग होता था। पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही गहनों के शौकीन थे। हुएन्संग लिखता है कि राजा और संपन्न लोग विशेष प्राभूपरा पासूपण पहनते हैं। अमूल्य मणियों और रनों के हार, अँगूठियाँ, कड़े और मालाएँ उनके आभूषण हैं। ! सोने चाँदी के रत्नजटित भुजवंद, सादे या मकराकृति सोने के कुंडल प्रादि वहुत से पाभरण पहने जाते थे। कभी कभी लियाँ कानों के नीचे के भाग

  • सोमैश्च शदरैश्च दुकूलैश्च लालातन्तुजैश्चांशुकैश्च नैश्च निर्मोकिनि-

भौनश्वासहायैः स्पर्शानुसेयैः वासोभिस्सर्वतः स्फुरदिदायुधसहस रिव संच्छा. ८ दितम् । हर्पचरित, पृ० २०२-३ । चि०वि०वद्य; हिस्ट्री श्राफ मिडिएवल इंडिया; जिल्द, ६,४० १२-१३। 1 वाटलं भान युवनच्चांग; जि० १, पृ० ५६ ।