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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१०७

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( ५६ ) को दो विभागों में छिदवाती थीं और प्रत्येक भाग में छेद कराकर उनके वीच तार डलवाती थी जिसमें सोने आदि की कई कड़ियाँ रहती थीं। कान के नीचे के भाग को छेदकर उसमें भिन्न भिन्न प्रकार के आभूषण पहनने की रीति तो उनमें साधारण सी थी। ऐसे छिदे हुए कानवाली स्त्रियों की मूर्तियाँ कई अजायबघरों में संगृहीत हैं । पैरों में भी सादे या धुंधरुवाले जेवर पहने जाते थे। हाथों में कड़े और शंख तथा हाथीदाँत की तरह तरह के कामवाली चूड़ियाँ, बाहु पर भिन्न भिन्न प्रकार के भुजबंद, गले में उत्तम और वहुमूल्य हार और अँगुलियों में भिन्न भिन्न प्रकार की अँगूठियाँ पहनी जाती थीं। स्तन कहीं खुले, कहीं पट्टी बँधे हुए और कहीं चोली से ढंके हुए रहते थे। संपन्न स्त्री पुरुष सुगंधित पुष्पों की मालाएँ भी पह- नते थे। चांडालों की स्त्रियाँ पैरों में रत्नजटित गहने पहन सकती थीं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार गहने पहनता था। किसी को कुछ पहनने की मनाई नहीं थी। और बुलाक का उल्लेख प्राचीन साहित्य में नहीं मिलता; संभव है, यह मुसलमानों से लिया गया हो। विद्वान् लोग भी भिन्न भिन्न प्रकार की साहित्य-चर्चाओं द्वारा विनोद किया करते थे। ऐसी साहित्य-चर्चाएं राजसभाओं या विद्वानों की मंडलियों में होती थी। वाणभट्ट अपनी 'कादंबरी' में राजसभा में कुछ साहित्यचर्चाओं--काव्यप्रबंध की रचना, पाख्या- नक कथाएँ, इतिहास और पुराणों के श्रवण, संगीत, अक्षर-न्च्युतक, मात्राच्युतक, विंदुमती, गूढ़ चतुर्थपाद, प्रहेलिका-प्रादि का वर्णन करता है। नथ

  • कादंबरी में चांडाल-कन्या का वर्णन ।

चि०वि०वैद्य; हिस्ट्री श्राफ मिडिएवल इंडिया; जिल्द २, पृ० १८७-८८ । कादंबरी; पृ० १४, निर्णयसागर संस्करण ।