पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/११४

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। उन्हें मुकदमा कराने की आवश्यकता कभी न होती थी।" यह उच्च चरित्र अत्यंत प्राचीन समय में ही नहीं थे किंतु हमारे समय के यात्रियों ने भी ऐसे ही वर्णन किए हैं। हुएन्त्संग लिखता है कि भारतीय सरलता और ईमानदारी के लिये प्रसिद्ध हैं वे अन्याय से धन- संचय नहीं करते। अल इदरिसी लिखता है कि भारतीय लोग सदा न्यायपरायण रहते हैं और उससे विमुख कभी नहीं होते। उनके व्यवहार में भलाई, प्रामाणिकता और निष्कपटता प्रसिद्ध है और इन विपचों में वे इतने प्रसिद्ध है कि सब देशों के लोग उनके यहाँ पहुँचते हैं और इससे उनका देश समृद्ध हो गया है। तेरहवीं सदो का शम्सुद्दीन अबु अब्दुल्ला बेदी इज़ जमाँ के फैननं को उकृत करते हुए लिखता है कि भारत की वरती बहुत घनी है, वहां के लोग धोखे और जबर्दस्ती से अलग रहते हैं। वे जीन मन्नं की कृतः परवाह नहीं करते। मार्को पोलो (तेरहवीं नदी ) का कान है कि ब्राह्मण उत्तम व्यापारी और सत्यवादा है। का उपयोग नहीं करते और संयमी जीवन व्यतीन कर चिरायु होते हैं। उस समय क्षत्रिय खाट पर गाना सपने लिये निंदनीय समझते थे । युद्धों में मरनं कं लियं ये लालायित रहते थे, परंतु ऐसा अवसर न मिलने पर वे कमी कमी पर्वत से लुढ़ककर ( भृगुपतन ), अग्नि में बैठकर जल मरने या कर में डूबकर मर जाते थे। पल्लाल सेन तथा धगदेव के पानी में डूबने और मृच्छकटिक के फर्ता शुद्रक त्यादि के भाग में जल भरनं ६ उदाहरण मिलते हैं। कई ब्राह्मण जर देवते थे कि वृद्ध हो गए हैं, तब वे स्वयं अग्नि में जल भरतं या पानी में कूद पड़ते ६ .