पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/११५

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(१४) सिकंदर के समय में भी अग्नि में बैठकर मरनेवाले एक वादाण का वर्णन मिलता है। मार्को पोलो भी इस प्रथा का वर्णन करता है । भारतीय समाज में स्त्रियों का स्थान किसी समाज की उन्नति तब तक पूर्ण नहीं समझी जा सकती जब तक उसमें स्त्रियों को उच्च स्थान न मिले । अत्यंत प्राचीन काल में भारत में स्त्रियों का आदर होता था इसलिये उन्हें अर्धाङ्गिनी का नाम दिया गया था। घर में उनका दर्जा बहुत ऊँचा था। यज्ञ यागादि में पति के साथ उनका वैठना आवश्यक समझा जाता था। रामायण और महाभारत में ही नहीं किंतु उनके बाद के नाटकों में भी स्त्रियों की स्थिति को अत्यंत उच्च बताया गया है। हमारे निर्दिष्ट समय तक भी समाज में त्रियों का स्थान बहुत ऊँचा था। भवभूति और नारायण भट्ट आदि के नाटकों से जान पड़ता है कि उस समय स्त्रियों का यथेष्ट मान और आदर किया जाता था । पिछले समय की तरह उस समय में 'स्त्रीशूद्री नाधीयताम्' प्रच- लित न था। सिायाँ भी पढ़ती थीं। वाण ने लिखा है कि राज्यश्री को बौद्ध सिद्धांतों की शिक्षा देने के लिये स्त्री-शिक्षा दिवाकरमित्र नियुक्त किया गया था। बहुत सी स्त्रियाँ बौद्ध भिक्षु भी होती थीं, जो निस्संदेह बौद्ध सिद्धांतों से भली भाँति परिचित होगी। शंकराचार्य के साथ शाखार्थ करने- वाली मंडनमिश्र की प्रकांड विदुषी पत्नी के विषय में यह प्रसिद्ध है कि उसने शंकराचार्य को भी निरुत्तर कर दिया था। प्रसिद्ध कवि राजशेखर की चौहान पत्नी अवंति-सुंदरी बहुत विदुषी थी। राज- शेखर ने अन्य विद्वानों से अपना मतभेद प्रकट करते हुए जहाँ और विद्वानों का मत दिखाया है, वहाँ उसने तीन स्थलों पर अवंति-सुंदरी का भी भिन्न मत दिया है। उस ( अवंति-सुंदरी ) ने प्राकृत कविता

  • चि० वि० वैद्य; हिस्ट्री ऑफ मिडिएवल इंडिया; जिल्द २, पृ० १६१ ।

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