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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१२६

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हम ( ७५ ) भिन्न भिन्न लखन-शैलियाँ आविष्कृत हुई। यह विकास ६०० ई. से नहीं, इससे बहुत पूर्व प्रारंभ हो चुका था। ऋषिकुल- चूड़ामणि कालिदास, भास, अश्वघोष आदि भी अपने काव्यां द्वारा तत्कालीन साहित्य को सुसंपन्न कर चुके थे। महाभारत और रामा- यण भी उनले पूर्व बन चुके थे, परंतु यह विकास यहीं तक नहीं रुक गया था। यह उन्नति बहुत समय तक जारी रही और देखते हैं कि ६०० ई. के बाद भी यह जाति-जन उसी तरह चलता रहा। हमारे निर्दिष्ट काल गं संकड़ों काव्य ( गद्य और पत्र ). नाटक, उपन्यास, कथाएँ एवं आख्यायिकाएँ लिखी गई भारतीय साहित्य के जितनं ग्रंथ अाज विद्यमान कंवल में देखकर हम तत्कालीन साहित्य की उन्नति का टांका टीम अनुमान नहीं कर सकते। उस समय के लिए तत्कालीन साहित्य को संपाड़ा संस्थत बंधन ना कर न्य उत्कृष्ट काव्य बहुत से एंसं गुभ रधानों में प. अभी तक किसी को पता भी नहीं । घाज जो घंत्र से बच गए हैं, उनकी संख्या बहुत थोड़ी। फिर भीमा पास तत्कालीन संस्कृत साहित्य की स्थिति का जानन ग्रंय बचे हैं.वं पर्याप्त है। इस समय उपलब्ध तत्कालीन काव्यादि नाहित्य में पता करना है कि उस समय का बहुत ला ला लाहित्य रानावर बार नहा- भारत की घटनाओं से भरा हुया है। पदि हम गमाया महाभारत की पायानों से संबन सब पुस्तकों को बता कर दंना अवशिष्ट पुस्तकों की संख्या वत घोड़ी रह जायगी यहाँ हन सहन कं कुल उत्पष्ट काव्यों का परिचय दें हैं। किरातार्जुनीयमका कार्ला भारवि नातवी नदी में बादा! सका संबंध महाभारत की पटनामों से है। यह शव्या