पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१२७

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, . ( ७६ ) साहित्य की दृष्टि से ही नहीं, नीतिशास्त्र की दृष्टि से भी एक उत्कृष्ट ग्रंथ है। अर्थ-गौरव इसका विशेष गुण है। इसके अंतिम भाग में कवि ने शब्द-वैचित्र्य के बहुत अद्भुत और उत्तम उदाहरण दिए हैं। एक श्लोक में तो 'न' के सिवा और कोई अक्षर ही नहीं, सिर्फ अंत में एक 'त' है । अमरुशतक एक उच्चकोटि का काव्य है। इसके विपय में प्रसिद्ध विद्वान् डाक्टर मैक्डॉनल ने लिखा है कि इस पुस्तक का लेखक प्रेमियों की प्रसन्नता और दुःख, क्रोध तथा भक्ति के भावों को दिखाने में सिद्धहस्त है। भट्टिकाव्य-इसे भट्टि ने, जो वलभी के राजाधरसेन का आश्रित था, साहित्य के रूप में शुष्क व्याकरण के रूप सिखाने के साथ साथ राम की कथा का वर्णन किया है । शिशुपाल वध-इसमें कृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध की कथा है । इसका कर्ता माघ कवि सातवीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था। इस काव्य में रचना-सौंदर्य के साथ उपमा, अर्थ-गौरव एवं पदलालित्य का अच्छा चमत्कार है। इसकी कविता के विपय में प्रसिद्ध है- उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम् । दण्डिन: पदलालित्यं माघे संति त्रयो गुणाः ।। नलोदय-इसमें नलदमयंती की कथा है। इसकी वर्णनशैली और छंदों की विविधता विशेप महत्व की है। तुकों का चमत्कार इसकी एक विशेषता है। वे केवल अंत में नहीं मध्य में भी आए हैं। यह ग्रंथ संस्कृत साहित्य में एक नई चीज है।

  • न नोननुन्नो नुन्नाना नाना नानानना ननु ।

नुन्नोऽनुन्ना ननुन्नेनो नानेनानुन्ननुन्ननुत् ।। किरातार्जुनीय; सर्ग १५, श्लोक १४ ।