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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१२९

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, ' 9 ( ७८ ) चरित,' 'समय-मातृका,' 'जातकगाला', 'कविकंठाभरण,' 'चतुर्वर्ग- संग्रह' आदि छोटे बड़े अनेक ग्रंथ लिखे। कुमारदास का 'जानकी- हरण', हरदत्त-विरचित 'राघवनपधीय,' मंखकवि-लिखित 'श्रीकंठ- चरित,' हर्प-कृत 'नैपधचरित,' वस्तुपाल-विनिर्मित 'नरनारायणानंद काव्य,' राजानक जयरथ-प्रणीत 'हरचरित-चिंतामणि,' राजानक रत्नाकर का 'हरविजय महाकाव्य,' दामोदर-विरचित 'कुट्टिनीमत,' वाग्भट-कृत 'नेमि-निर्वाण,' धनंजय श्रेष्ठि का 'द्विसंधान महाकाव्य, संध्याकरनंदी का 'रामचरित,' विल्हण-प्रणीत 'विक्रमांकदेवचरित, पद्मगुप्त-प्रणीत 'नवसाहसांक-चरित,' हेमचंद्र का 'हु याश्रय महा- काव्य,' जयानक-रचित 'पृथ्वीराजविजय,' सोमदेव-कृत 'कीर्ति- कौमुदी' और कल्हण-विनिर्मित 'राजतरंगिणो' आदि सैकड़ों काव्य हैं । इनमें से अंतिम सात ऐतिहासिक ग्रंथ हैं। हमारे समय में सुभापितों-भिन्न भिन्न विषयों के उत्तम श्लोकों- के कई संग्रह भी हो चुके थे। अमितगति ( ६३ ई० ) के 'सुभापित- रत्नसंदोह' और वल्लभदेव ( ११वीं शताब्दी) सुभापित संग्रह की 'सुभापितावलि' के अतिरिक्त एक चौद्ध विद्वान् का सुभापितसंग्रह भी मिला है, जो प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता डा० टामस ने 'कवींद्रवचनसमुच्चय' नाम से प्रकाशित किया है। इस ग्रंथ की १२ वीं शताब्दी की लिखी हुई एक प्रति मिली है। इस ग्रंथ का तथा ग्रंथ के लेखक का नाम अभी तक अज्ञात है। साहित्य में कथाओं और आख्यायिकानों का भी एक विशेप स्थान है। हम देखते हैं कि हमारे निर्दिष्ट काल में इस ओर भी

  • कई विद्वान् इस ग्रंथ को १४ वीं शताब्दी का बना हुअा मानते हैं,

परंतु यह ठीक नहीं। सर्वानंद ने, जो ६०८५ शक संवत् (११५६ ई.) में हुआ था, अमरकोश की 'टीकासर्वस्व' नाम की टीका में सुभापितावलि के अंश उद्धत किए हैं