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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१२८

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, ( ७७ ) राघवपांडवीय-इसका कर्ता कविराज (८०० इन्वी के कनव । हुया। इस ग्रंथ में रामायण और महाभारत की घटनाओं का खाध साथ वर्णन किया गया है प्रत्येक लोक के दो अयं होने है। एक रामायगा की कथा बतलाता है, तो दूसरा महाभारत की। इस शैली के और भी काव्य मिलते हैं पाभ्युदय काव्य-यह ग्रंथ जैन आचार्य जिनसन ने दक्षिा कं राष्ट्रकृट राजा अमाधवर्ष ( नवीं सदी ) के समय में किया। इसी विशंपता यह है कि पार्श्वनाथ कं चरित कं नाय कहीं मंनिस पंकि, कहीं पहली और चाधी, कहीं पहली बार तीनरी पंकि, क्या कहीं दूसरी और तीसरी पंक्ति मंघदृत से ली गई है। वृहत् काव्य में उसनं संपूर्ण संघदृत का समावेश कर दिया है। अपनी कथा में काई अंतर पड़नं नहीं दिया। न पुग्ला में मंघदूत के तत्कालीन पाठ का निर्णय का माना। वैसे ता संग्कृत का प्राय: संशा पाय मामिनाया कारण गंय काव्य ( Lyric Jyok 11. ) फाहा जा सकता जयदेव का बारहवीं शताब्दी गं बनाया गया कि कविता का उत्कृष्ट ग्रंथ है वापि न मरे कठिन दी। उत्तम शब्द-विन्यास की पूर्णता दिया है। अपनी अनुपा चना में अनुप्रास चार तुया से उपनं दापिता को बहुत ही अधिक माह कार भावोत्तेजक बना दिया है, जो भि. मिल रागों मनाई जा मान है। पूल काव्य की बड़े बड़े पाश्चात्य विज्ञानी में नमक प्रशंसा की है और पाइयों ने तो इसमें गंध सविता का पा. फाटा मान ली है। एनके अतिरिन. वात सं संबन काय हमारं निर्विमान में लि गए, जिनमें से कुल एक. ६. नाम नीचे दिए जाते है । प्रसिद्ध कवि मंद्र में समाचण-जरी.' भारत-जग.' 'मान. ---