पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१३६

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व्याकरण है प्राचीन काल में व्याकरण को बहुत महन्त्र दिया जाता था। बंद के छः अंगों में व्याकरण ही प्रथम और प्रधान समझा जाना था। ६०० ई० तक व्याकरण बहुत उन्नत हो चुका था। पाणिनि के व्याकरण पर कात्यायन और पतंजलि अपने वार्तिक चार महामात्र लिख चुके | । शर्ववर्मा का 'कातंत्र व्याकरण भी, जो प्रारंभिक विद्यार्थियों के लियं लिखा गया था, बन चुका था। इन पर नान टीकाएँ मिल चुकी हम देखते हैं कि व्याकर बहुत समय तक हिंदुओं में मुख्य विषय बना रहा । पंडित नलिये व्या. रण का प्रकांड विद्वान होना आवश्यक समझा जाता था। इस निर्दिष्ट काल में भी व्याकरगा विषयक का उनकानन , गए। सबसे प्रथम पंडित जयादित्य और वामन नं: आसपास 'काशिकावृत्ति' नाम से पाणिनि कंत्री लिखा, जो बहुत उत्तम तथा उपयोगी ग्रंथ : : . शाम की दृष्टि से व्याकरण पर 'बाबयप्रदीप नाम ::: तथा 'महाभाष्य-दीपिका' और 'महामान्य-त्रिपदी व्यापा उस समय तक उणादि सूत्र भी बन चुकं घे. जिन का ई० में उज्ज्वलदत्त ने की पाणिनि की बायाची पर ग्रंथों के अतिरित्त भी कई स्वतंत्र व्याकरण यनं । चंद्रगामिल: ई० कं करीव 'चांद्रव्याकरण' लिखा। उसने न पारिति और महाभाष्य का भी कुत उपयोग किया है । इला ताहाना. टायन नं नवीं शताब्दी में एक व्याकरण लिखा। मिटनाका हमचंद्र ने अपनी तथा अपने समय के राजा मिलनाजई नदि किर रखने के लियं शाकटायन के त्याकारण सभी विद दिन्नत टि. हम नामक व्याकरण लिखा। जैन होने का मन कर. भाषा संबंधी नियमों का वर्णन नहीं दिया। --