पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१३८

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( 5 ) - है इसमें शब्द, उससे पहले कंबंधों में उन्न्य नहीं मिलना । ७.० पीछे नहीं माना जा सकता। माधन का लिया नंगा. समुच्चय' ' भी बहुत उपयोगी कोप है । इलायुध नं ५, करीव 'अभिधान रत्रमाला लिची । इनमें कुन्त लोक दक्षिणी विद्वान यादवमट्ट का 'जयंती कोप भी बहुत अका जाजरों की संख्या और लिंग कं लाय नाय कागादि वाम के अनुसार लिन्च गए हैं। इनकं अतिरिन, धनंजय-कृत नाम- माला', महेश्वर-विनिर्मित 'विश्वप्रकाश और मंत्रावि-निन 'अनेकार्य कोप' आदि कोप लिग्यं गए। नचंद्रमा 'मिशन- चिंतामणि कोप' भी बड़े महत्व का है, जो उनी ॐ अलनानुसार उसके व्याकरण का परिशिष्ट है फिर उसनं नारक पनि के रूप में वनरपति शास्त्र संबंधी शब्दों का लागी कोप' लिखा। उसने अनेकार्य नंग्रा भी दिया ।::...: केशवरवामी ने 'नानार्म-संकल्प' नामक एक कार निना। > . दर्शन हमारा निर्दिष्ट काल दार्शनिक तट से हतिय पE पहुँचा हुआ था। म समय सं पूर्व भारत में दर्शन :- संप्रदायों-न्याय, वैशेषिक, सांय, चाग. पई नानांना मीमांसा ( वेदांत )--का पूर्ण विकास हो काका न्याय से याचिकाद बनने का निर्वे किया। उति के शिखर पर। इन कातिरिन बाद वत पर चर। शांति तथा जनता का पंट मग्नं दी दिला न रहा दक य. तो स्वाभाविक पनि है कि दादा