पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१४०

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( ६ ) इच्छा, लेप, प्रयव, सुन्च, दुःच. और हान चान्या लिग ( अनुमान के साधन-चिट चा हंतु ) है. अान्या ही अनार भोक्ता है। संसार को बनानवाला पात्या ही थर (पन्म अात्मा) है। ईश्वर में भी आत्मा कं समान नंग्या, परिमाग, यकव. संयोग, विभाग आदि गुगा है, परंतु निन्य नप में। जन्म में किए हुए कर्मों के अनुसार शरीर उत्पन्न होता है। पंचभूतों से इंद्रियों की उत्पत्ति होती है और परमाणुत्रों योग में नदि ऊपर निग्य हुए इस लिट्टांत-परिचय में जानना है कि हमार न्यायशाला कंवल तर्कशाला नहीं है, किंतु मंत्रों का विचार करनेवाला दर्शनशान है। 9177771 77:9717Ligici इनका यही भेद हैं .