पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१५५

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(१०४ ) वराहमिहिर के बाद ज्योतिष का प्रधान विद्वान् बासागुप्त हुआ। उसने ६२८ ई० के आसपास 'बामास्फुट सिद्धांत' और 'खंडखाद्य लिने , उसने प्रायः अपने पूर्व के विद्वानों ६००१०-१२०. का समर्थन किया है। उसकी प्रतिपादन-शैली ई० तक का ज्योतिर अधिक विस्तृत और विधियुक्त है। उसने साहित्य ग्यारहवें अध्याय में आर्यभट की आलोचना की है। इसके कुछ वर्षों बाद प्रसिद्ध लल्ल हुया, जिसने अपने 'लन- सिद्धांत' में आर्यभट के भूभ्रमण के सिद्धांत का विरोध करते हुए लिखा है-'यदि पृथ्वी घूमती होती तो वृक्ष पर से उड़ा हुआ पक्षी अपने घोंसले पर फिर नहीं जा सकता। लेकिन लन को यह मालूम नहीं था कि पृथ्वी अपने को घेरे हुए वातावरण सहित घूमती है। यदि उसको यह ज्ञात होता तो वह भूभ्रमण के सिद्धांत का विरोध न करता। लल्ल के बाद हमारे समय में चतुर्वेद पृथदक स्वामी ने ६७८ ई० के आसपास ब्रह्मगुप्त के 'बाह्मस्फुट सिद्धांत' की टीका लिखी। १०३८ ई० के करीब श्रीपति ने 'सिद्धांतशेखर' और 'धीकोटिद' ( करण ); वरुण ने ब्रह्मा गुप्त के 'खंडखाद्य' पर टीका और भोजदेव ने 'राजमृगांक' ( करण ) लिखे। ब्रहादेव ने ग्यार- हवीं सदी के अंत में 'करणप्रकाश' नामक ग्रंथ लिखा। हमारे समय के अंत में प्रसिद्ध ज्योतिपी महेश्वर का पुत्र भास्करा- चार्य हुआ। उसने 'सिद्धांतशिरोमणि', 'करणकुतूहल', 'करण- केसरी', ग्रहगणित', 'ग्रहलाघव', 'ज्ञानभास्कर', 'सूर्यसिद्धांत व्याख्या' और 'भास्कर-दीक्षितीय' लिखे। सूर्यसिद्धांत के बाद 'सिद्धांत- शिरोमणि' एक प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। इसके चार भाग

  • यदि च भ्रमति तमा तदा स्वकुलायं कथमाप्नुयुः खगाः ।

इपयोऽभिनभः समुमिना निपततः स्युरपपिदिशि ॥ लल्लसिद्धांत । . ,