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पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१५६

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. (१०५) लीलावती, वीजगणित, ग्रहगणिताध्याय और गोलाध्याय हैं। पहले दो तो गणित संबंधी हैं और पिछले दो ज्योतिष से संबंध रखते हैं भास्कराचार्य ने इस ग्रंथ में पृथ्वी के गोल होने और उसमें आकर्षण- शक्ति होने के सिद्धांतों का प्रतिपादन बहुत अच्छी तरह किया है। वह लिखता है- "गोले की परिधि का सौवाँ भाग एक सीधी रेखा प्रतीत होता है। हमारी पृथ्वी भी एक बड़ा गोला है। मनुष्य को उसकी परिधि का एक बहुत ही छोटा भाग दीखता है, इसी लिये वह चपटी दीखती है* "पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति के जोर से सब चीजों को अपनी ओर खींचती है। इसी लिये सभी पदार्थ उस पर गिरते हुए नजर आते हैं। न्यूटन से कई शताब्दियों पहले ही भास्कराचार्य ने आकर्पण का यह सिद्धांत ( Theory of gravitation ) इतनी उत्तमता से लिख दिया है कि उसे देखकर आश्चर्य होता है। इसी तरह उसने ज्योतिप के अन्य सिद्धांतों का भी बहुत अच्छी तरह वर्णन किया है। इस तरह हमारे निर्दिष्ट काल में ज्योतिष शास्त्र बहुत उन्नत हो चुका था। अलवेरूनी ने भी अपने प्रसिद्ध ग्रंथ में हमारे ज्योतिष शास्त्र की उन्नति तथा उसके कुछ सिद्धांतों का उल्लेख किया है डब्ल्यू० डव्ल्यू० हंटर के कथनानुसार ८ वीं सदी में अरव के विद्वानों ने भारत से ज्योतिप सीखी और सिद्धांतों का 'सिंदहिंद' नाम से

  • समो यतः स्यात्परिधेः शतांशः पृथ्वी च पृथ्वी नितरां तनीयान् ।

नरश्च तत्पृष्टगतस्य कृत्स्ना समेव तस्य प्रतिभात्यतः सा॥ सिद्धांतशिरोमणि-गोलाध्याय । आकृष्टशक्तिश्च मही तया यत् स्वस्थं गुरु स्वाभिमुखं स्वशक्तथा । श्राकृष्यते तत् पततीव भाति समे समन्तात् क पतत्वियं खे ॥ म०-१४