सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मध्यकालीन भारतीय संस्कृति.djvu/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. (१०८) भारतीय गणित की उन क्रियाओं, जो आज प्रचलित क्रियाओं की तरह संपूर्ण हैं और उनके बीजगणित की विधियों पर विचार तो करो और फिर सोचा कि गंगा के तीर पर रहनेवाले वाहाण किस श्रेय के भागी नहीं है ? दुर्भाग्य से भारत के कई अमूल्य अाविष्कार यूरोप में बहुत पीछे पहुँचे, जिनका प्रभाव, यदि वे दो तीन सदी पहले पहुँचते तो बहुत पड़ता" | इसी तरह डि मार्गन ने लिखा है-"हिंदू गणित यूनानी गणित से बहुत उच्च कोटि का है। भारतीय गणित वह है, जिसे हम आज प्रयुक्त करते हैं। गणित पर सामान्य रूप से विचार करने से पूर्व अंक विद्या पर विचार करना अधिक लाभप्रद और उपयोगी होगा। भारतवर्ष ने अन्य देशवासियों को जो अनेक बाते सिखलाई', उनमें सबसे अधिक महत्त्व अंक-विद्या का है। संसार भर में गणित, ज्यातिप, विज्ञान आदि में अाज जो उन्नति पाई अंक-प्रम का विकास जाती है उसका मूल कारण वर्तमान अंक-क्रम है, जिसमें एक से नौ तक के अंक और शून्य, इन दस चिह्नों से अंक-विद्या का सारा काम चल जाता है। यह क्रम भारतवासियों ने ही निकाला और उसे सारं संसार ने अपनाया। हिंदी के पाठकों में से कदाचित् थोड़े ही यह जानते होंगे कि इस अंक-क्रम के निर्माण से पूर्व संसार का अंक-क्रम क्या था और वह गणित ज्योतिष एवं विज्ञान आदि की उन्नति के लिये कितना वाधक था ? इसलिये यहाँ संक्षेप से संसार के प्राचीन ग्रंक-क्रम का विवेचन कर वर्तमान अंकों की भारतीय उत्पत्ति के संबंध में कुछ कहना अनुचित न होगा। भारतवर्ष के प्राचीन शिलालेखों, दानपत्रों, सिक्कों तथा हस्त- लिखित पुस्तकों आदि के देखने से पाया जाता है कि प्राचीन काल